एक अल्पविराम लूंगी...कुछ दिनों के लिए...तबतक कोई पाती नहीं क्योंकि वहां कोई कबूतर नहीं जिसके पंजों में ख़त बांधकर भेज सकूं...लेकिन और बहुत कुछ है ....सुकून भरी साँसे हैं...पढाई और कॉलेज की भाग-दौड़ से थोड़े दिनों की आज़ादी है....निकम्मों की तरह पूरा-पूरा दिन सोने की छूट है...मम्मी हैं जिनके पास न जाने कौन सा प्लास्टर ऑफ़ पेरिस है जो माथे से लेकर मन तक की दरारें भर देता है.....पापा हैं जिनसे थोडा सा डरती हूँ लेकिन उनके बिना कुछ भी नहीं कर सकती.....और हाँ अभी तो कुछ दिनों के लिए दीदी और उसका छोटासा बेटा वेदांग भी है जो इन दिनों घर कि धुरी बन गया है,जिसके इर्दगिर्द पूरा घर चक्कर काटता है...जिससे मिलने कि सबसे ज्यादा बेचैनी है मुझे....
और भी बहुत कुछ है.....खिड़की के पास वाली क्यारी में लगे देसी गुलाब कि खुशबू है.....तेज़ हवा के साथ लयबद्ध पीपल के पत्तों का झुनझुना है... अमलतास के झूमर हैं.....कनेर की फूलों से लदी झाड़ें हैं..... रात में खुले आसमान के नीचे घंटों बैठ गप्पें मारने की फुर्सत है...अगर कम शब्दों में कहूं तो मैं अपने घर जा रही हूँ गर्मी की छुट्टियाँ बिताने....एक महीने बाद लौटूंगी देसी गुलाब खुशबू से सराबोर पातियाँ लेकर...
इस पोस्ट को publish करने से पहले उन सबको धन्यवाद देना चाहूंगी जिन्होंने मेरी पिछली सारी पोस्टें पढ़ी और उनपर अपनी प्रतिक्रिया दी.....ये कुछ ऐसा ही है जैसे आप बोलते हैं तो चाहते है कि कोई सुने..... जब कोई नहीं सुनता तो लगता है कि बोले ही क्यूँ......और जब कोई सुनने वाला हो तो मन करता है कि दिल खोल कर बातें करें......कुछ अपनी कहे कुछ आपकी सुने.....
अभी बस इतना ही...
शेष फिर लिखूंगी...फिर कहूँगी....फिर सुनूंगी...