Friday, June 24, 2011

शेष फिर

   एक अल्पविराम लूंगी...कुछ दिनों के लिए...तबतक कोई पाती नहीं क्योंकि वहां कोई कबूतर नहीं जिसके पंजों में ख़त बांधकर भेज सकूं...लेकिन और बहुत कुछ है ....सुकून भरी साँसे हैं...पढाई और कॉलेज की भाग-दौड़ से थोड़े दिनों की आज़ादी है....निकम्मों की तरह पूरा-पूरा दिन सोने की छूट है...मम्मी हैं जिनके पास न जाने कौन सा प्लास्टर ऑफ़ पेरिस है जो माथे से लेकर मन तक की दरारें भर देता है.....पापा हैं जिनसे थोडा सा डरती हूँ लेकिन  उनके बिना कुछ भी नहीं कर सकती.....और हाँ अभी तो कुछ दिनों के लिए दीदी और उसका छोटासा बेटा वेदांग भी है जो इन दिनों घर कि धुरी बन गया है,जिसके इर्दगिर्द  पूरा घर चक्कर काटता है...जिससे मिलने कि सबसे ज्यादा बेचैनी है मुझे....
    और भी बहुत कुछ है.....खिड़की के पास वाली क्यारी में लगे देसी गुलाब कि खुशबू है.....तेज़ हवा के साथ लयबद्ध पीपल के पत्तों का झुनझुना है... अमलतास के झूमर हैं.....कनेर की फूलों से लदी झाड़ें हैं..... रात में खुले आसमान के नीचे घंटों बैठ गप्पें मारने की फुर्सत है...अगर कम शब्दों में कहूं तो मैं अपने घर जा रही हूँ गर्मी की छुट्टियाँ बिताने....एक महीने बाद लौटूंगी देसी गुलाब खुशबू  से सराबोर पातियाँ लेकर...
   इस पोस्ट को publish करने से पहले उन सबको धन्यवाद देना चाहूंगी जिन्होंने मेरी पिछली सारी पोस्टें  पढ़ी और उनपर अपनी प्रतिक्रिया दी.....ये कुछ ऐसा ही है जैसे आप बोलते हैं तो चाहते है कि कोई सुने..... जब कोई नहीं सुनता तो लगता है कि बोले ही क्यूँ......और जब कोई सुनने वाला हो तो मन करता है कि दिल खोल कर बातें करें......कुछ अपनी कहे कुछ आपकी सुने.....
   अभी बस इतना ही...
   शेष फिर लिखूंगी...फिर कहूँगी....फिर सुनूंगी...
 

Thursday, June 23, 2011

कविता के लिए

    टीवी पर जनहित में जारी एक विज्ञापन देखा.उससे जो समझा वो ये कि जो लोग सिगरेट पीते हैं उनके फेफड़ों को निचोड़ें तो बहुत सारा टार इकठ्ठा हो जायेगा...
    मगर मै कुछ और सोच रही थी.एक बार एक ऐसे शख्श के मन को निचोड़िए जो आंसू में घोल-घोलकर उदासी को पीता रहता है.बोलिए क्या मिलेगा?ढेर सारी स्याही...वो भी नमकीन.ये स्याही उधार मिल जाये तो इसी में डुबो कर कोई कविता लिख डालूँ. बड़ी खूबसूरत कविता बनेगी...उदासी से अलंकृत...लावण्य से दिपदिपाती...एक सुंदर सी कविता.
    तो...कविता के लिए तलाश है एक बेहद गहरी उदासी की...

स्लेट पर लिखी चिठ्ठी


      हमारी अजीब-सी जोड़ी...तुम बहुत बोलते हो..मै बहुत सुनती हूँ..अच्छा लगता है..पर सोचती हूँ कभी तुम भी सुन लेते...पर कैसे? मै तो बोल ही नहीं सकती! कई बार सोचती हूँ कि तुम मेरी चुप्पी को पढ़ लेते..वैसे ही जैसे मैं तुम्हे पढ़ लेती हूँ,तब भी जब तुम कुछ नहीं कहते.
          फिर एक दिन सोचा...बहुत-बहुत सोचा...फिर बहुत सोच-सोचकर ..कई बार पोंछ-मिटा कर,अंततः एक चिठ्ठी लिख ही डाली...लेकिन स्लेट पर. ताकि उसे थोडा और edit  कर सकूं...एक-एक शब्द सोच-समझकर ताकि तुम शब्द दर शब्द मेरे मन को पढ़ सको.
         इस बीच कितने काम थे.इसी सब में भूल गई.न जाने कैसे पानी के कुछ छींटे पड़े और स्लेट पर लिखी उस चिठ्ठी के कुछ शब्द धुल गए.सोचा -कोई बात नहीं बाद में ठीक कर दूँगी. फिर पास रखे फूलदान की धूल झाडी.कपडा स्लेट से जा लगा.कुछ और शब्द मिट गए.सोचा-कोई बात नहीं,ये भी ठीक कर दूँगी.
      इस बीच अचानक तुम न जाने कहाँ से आये और वो आधी-अधूरी चिठ्ठी पढ़ ली.मैंने क्या लिखा...तुमने क्या पढ़ लिया! मैंने क्या चाहा...तुम क्या समझ बैठे!
     उफ़!अब तुम्हे कैसे समझाऊँ..ये तो roughwork थी! काश!मैंने स्लेट मेज़ पर रखकर न छोड़ी होती...या फिर  उसे छिपा दिया होता पक्की चिठ्ठी लिखने तक...या फिर... मैंने तुम्हे चिठ्ठी ही न लिखी होती...काश!!! 
 

Thursday, June 09, 2011

दहेज

    

माँ,
तुम क्या सहेजा करती हो
इस संदूक में?
ये गहने,ये साडियां
सब जानती हूँ मैं
ये सब तुम मुझे दोगी न
जब विदा करोगी मुझे   
अपने आँगन से.

लेकिन माँ,
अगर मैं कुछ और मांगूं  तो?
बोलो न,दोगी मुझे?
मुझे ये गहने मत देना  दहेज़ में
मुझे मेरा वो कलर-बॉक्स देना 
जिससे न जाने कितने ही
पेड़,पहाड़,झरनों और 
फूलों में रंग भरना सिखाया था तुमने 


और पापा,
मुझे किसी नए मॉडल की गाड़ी नहीं चाहिए
मुझे मेरी वो ट्राई-साइकिल देदेना
जो आपने मेरे दूसरे जन्मदिन पर दी थी
जिसपर बैठ कर मैं
आंगन के चक्कर काटा करती थी .

माँ,
कभी जब तुम बुलाओ 
और मैं न आ सकूं 
तो ये मत कहना 
"कोई बात नहीं बेटा,
तुम्हारी जिम्मेदारियाँ हैं"
बस छड़ी उठाना और
 पिटाई करना,
जैसे तब करती थी
जब तुम्हारे  बुलाने पर भी 
खेल छोड़ कर नहीं आती थी  
तुम्हारी मदद के लिए.
माँ, तुम्हारी हर जरूरत पर
तुम्हारे पास होने का अधिकार 
मुझे दहेज में देकर विदा करना .


पापा,
जिस बेटी को बेटा बना कर पाला है 
उसे उसके कर्तव्यों के 
निर्वाह का अधिकार दहेज़ में जरूर देना.
जानती हूँ ,
इस आँगन में मेरे पायल की रुनझुन
अब नहीं होगी ,लेकिन 
कभी आकर आँगन की तुलसी को
पानी देने का अधिकार 
मुझे दहेज में जरूर देना.