Tuesday, December 27, 2011

तुम ठीक तो हो न!

     याद है तुम्हे एक दिन जब मैं पगडंडी पर तुम्हारे पीछे भागी जा रही थी छड़ी का एक सिरा तुमने पकड़ रखा था और एक मैंने.वो छड़ी जो तुम्हारे कंधे पर टिकी थी.तुम्हे पता था कि मैं गिर जाउंगी अगर तुमने मुझे यूं न संभाला,लेकिन तुम ये जतलाना भी नहीं चाहते थे कि तुम्हे मेरी फ़िक्र है. फिर सरसों के खेतों के बीच खड़े हुए तुम्हारी एक फोटो भी खींची थी मैंने. उफ्फ! कितने नखरे दिखाते थे तुम फोटो खिंचवाने के नाम पर.लेकिन मैं भी पूरी जिद्दी-तुमसे लड़कर,मिन्नतें करके तुम्हारी फोटो खींच ही ली थी मैंने इस बार.फूली हुई सरसों के बीच खड़े तुम्हारा धूप में लाल हुआ चेहरा कैसा दिपदिपा रहा था! खेतों में उतरते हुए तुम गिर भी गए थे. मैं भागी-भागी आई थी. हौले से तुम्हारा कंधा सहलाकर पूछा था,"कहीं लगी क्या?तुम ठीक तो हो न!"
    आज पुरानी डायरी निकाली तो वो तस्वीर उसमें से फिसल कर नीचे गिरी.और मेरा पागलपन देखो! उस तस्वीर में तुम्हे सहला रही थी-कहीं तुम्हें लगी तो नहीं! इस तस्वीर को हमेशा जूम करके देखती हूँ ताकि तुम्हारी आँखों में झाँक कर देख सकूँ.
      कितने साल हो गए थे तुम्हें देखे. आज तुम्हे देखा तो लगा ही नहीं कि बीच में इतने सालों का फासला भी था.तुम्हे देखकर फिर वही अल्हड़पन जाग उठा है. मन करता कि फिर से वैसे ही बेफिक्री से तुम्हारे पीछे भागूँ छड़ी पकडे हुए जिसका एक सिरा तुमने अपने कंधे पर टिका रखा हो.तुम्हारी फिर से एक तस्वीर खींचूँ(और इस बार थोड़ी पास से) ताकि तुम्हारी आँखों में देखा कर सकूँ. तब भी जब तुम मेरे पास न रहो.
     पता है तुम्हे!तुम आज भी वैसे ही दीखते हो. हाँ! कनपटी पर कुछ चांदी के तार से दीखने लगे हैं.ओह!Conscious  मत हो. इन तारों के साथ तो और भी अच्छे लगते हो.तुम्हारे चेहरे का दूधिया रंग उम्र कि धूप में तप कर थोड़ा सुनहला हो गया है.और तुम्हारी आँखें, इनमे तो जैसे ज़िन्दगी खिलखिलाती है...लेकिन इनकी वो हीरे-सी चमक कहाँ छोड़ आये तुम? न! मुझसे नज़रें मत चुराओ...इनमे झाँकने दो मुझे...ये आँखें मुझसे आज भी कुछ नहीं छुपा सकती! थोड़ी थकी-सी लग रही हैं तुम्हारी आँखें. दिल चाहता है तुम्हारे पास आकर,तुम्हारा कंधा सहलाकर पूछूँ फिर से...तुम ठीक तो हो न! 

10 comments:

Abhishek Ojha said...

उफ़्फ़ ! :)

देवांशु निगम said...

देवांशु निगम said...

ये डायरियां और उनमे छिपी तस्वीरें, अक्सर बहुत तड़पा के रख देती हैं, इन्हें ना पलटा जाये, तो ही बेहतर...

abhi said...

ओह...कितनी मासूम और प्यारी पोस्ट है...पहले लाईन से ही ऑटोमेटिक चेहरे पे एक मुस्कान आ गयी जो अभी कमेन्ट लिखने तक बनी हुई है :) मुझे ऐसी पोस्ट पढ़ना कितना अच्छा लगता है वो मैं बतला नहीं सकता और सुबह सुबह ऐसी पोस्ट पढ़ने को मिल जाए तो फिर और क्या चाहिए :)

Smita said...

nice smriti......chhoo liya isne antarman tak.....

संतोष त्रिवेदी said...

भाव और प्रवाहपूर्ण लेखन !

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

समय की धूल उन मीठी यादों को नहीं ढांप सकती। सुंदर संस्मरण - यथार्थ हो या काल्पनिक :)

Puja Upadhyay said...

कोई हमसे भी पूछे कैसे हैं हम...तुम्हें पढ़ा है...परेशान हुये बैठे हैं...दिल का कोई रीता कोना टीसने लगा है...कोई हमसे क्यूँ न पूछे कि कैसे हैं हम...और तू भी क्यूँ न उनसे पूछ आए कि कैसे हैं वो...

तेरा लिखना आँखों में सरसों के फूल खिला गया है...

डॉ .अनुराग said...

उफ़ प्यार !!!!

Daisy said...

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