टीवी पर जनहित में जारी एक विज्ञापन देखा.उससे जो समझा वो ये कि जो लोग सिगरेट पीते हैं उनके फेफड़ों को निचोड़ें तो बहुत सारा टार इकठ्ठा हो जायेगा...
मगर मै कुछ और सोच रही थी.एक बार एक ऐसे शख्श के मन को निचोड़िए जो आंसू में घोल-घोलकर उदासी को पीता रहता है.बोलिए क्या मिलेगा?ढेर सारी स्याही...वो भी नमकीन.ये स्याही उधार मिल जाये तो इसी में डुबो कर कोई कविता लिख डालूँ. बड़ी खूबसूरत कविता बनेगी...उदासी से अलंकृत...लावण्य से दिपदिपाती...एक सुंदर सी कविता.
तो...कविता के लिए तलाश है एक बेहद गहरी उदासी की...
11 comments:
मुझसे इतना बात करोगी तो उदासी कभी पास भी न फटकेगी...उसके लिए तुम्हें अपना फोन बंद करना होगा :)
सागर ने इस पोस्ट पर मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट मारा है...ये लड़का भी पागल ही है...ये नहीं कि इधर कुछ लिखें...खैर
'थोड़ी बारिश इधर भी भेज दो, स्मृति का ऑरकुट लिंक इधर भी दे देती तो आसान होता, कुछ और जानकारी मिलती, उसके ब्लॉग पर तो एक मुठ्ठी अक्षर रखे हैं. चिंता मत करो. देर सवेर वहां भी पहुँच ही जायेंगे. बारिश थोडा इधर भी भेज तो अभी तो गर्मी के मारे रो रहे हैं., और देखो उसने बहुत सुन्दर पैरा लिखा है. "कविता के लिए तलाश है एक बेहद गहरी उदासी की" बधाई दो उसको... चलो पता ही दे दो हम बधाई हम दे देंगे :) हम भी कुछ ऐसे ही थेत्थर हैं.'
तुम बेहद खूबसूरत लिखती हो स्मृति...हमेशा से...जियादा उदासियों की तलब मत करो उसके लिए.
हाँ कविता के लिए ऐसी तलब जायज़ है...
रंग रोगन हुआ है, नाम भी बदल गया है, ख्याल है कि मेरे नाम का पत्थर पहले ही शीशा तोड़ गया होगा.
आज कि ग्रेवी काफी tight है. बस लगातार बनाती रहिये.
मन को निचोड़ने से क्या निकलेगा? बहुत प्रयास किया मन निचोड़ने का पर लगता है उसे अमरत्व मिला है, दुख से भरे रहने का।
बहुत खूब... वो गहरी उदासी बिना बताये भीतर घर लेगी ... पर उससे पहले है तो कविता जो तुम्हें लिख रही है ...
गुलज़ार साहब कहते हैं न
मैं अश्कों से लिखता रहा
तुम वाह वाह करते रहे
कभी चख के देखे होते लफ्ज मेरे :)
ये थोट अच्छा है..
hmm kavita ke lie udasiyan....sach me jaruri hai....shayad log sach hi kahte hai dard likhne ke lie dard hona jaruri hai....
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