हमें शौक है बनाने का
रेत के मकां
समंदर के किनारे
कि लहरें आकर उन्हे
बिखेरें बेदिली से
कि मिटने का भी
अपना सुख है
हम लिखेंगे अपना नाम
निशान लगी दीवारों पर
बुलडोज़र चलने से ठीक पहले
और जलाएंगे दीये
तेज़ हवाओं में
आँचल की ओट करके
बनायेंगे सेतु
जोड़ने के लिए
चक्रवाती तूफ़ान और
बहुत सारी स्थिरता के
दो पाटों में बंटे
अपने ही मन को
और
उस पुल पर खड़े हो
आंकेंगे अपनी ही गहराई को
ढूंढते फिरेंगे हम सुकून
सारी क़ायनात में
पहाड़ो में, झरनों में,
नदी की कलकल में
चिड़ियों के गीत में
तारों के झुरमुट में
रात की स्याही में
और अन्ततः
लौट आयेंगे
नींद के साथ
खुद ही में समेटे
थोड़ी और बेचैनियाँ
3 comments:
I enjoy reading a post that can make men and women think.
Also, many thanks for permitting me to comment!
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