Sunday, November 09, 2014

रेत के मकां

हमें शौक है बनाने का  
रेत के मकां
समंदर के किनारे
कि लहरें आकर उन्हे
बिखेरें बेदिली से
कि मिटने का भी
अपना सुख है

हम लिखेंगे अपना नाम
निशान  लगी दीवारों पर
बुलडोज़र चलने से ठीक पहले
और जलाएंगे दीये
तेज़ हवाओं में
आँचल की ओट करके

बनायेंगे सेतु
जोड़ने के लिए
चक्रवाती तूफ़ान और
बहुत सारी स्थिरता के
दो पाटों में बंटे
अपने ही मन को
और
उस पुल पर खड़े हो
आंकेंगे अपनी ही गहराई को

ढूंढते  फिरेंगे हम सुकून
सारी क़ायनात में
पहाड़ो में, झरनों में,
नदी की कलकल में
चिड़ियों के गीत में
तारों के झुरमुट में
रात की स्याही में
और अन्ततः
लौट आयेंगे
 नींद के साथ
खुद ही में  समेटे
थोड़ी और बेचैनियाँ

3 comments:

Anonymous said...

I enjoy reading a post that can make men and women think.
Also, many thanks for permitting me to comment!


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Daisy said...

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Daisy said...
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