Thursday, January 05, 2012

ये खूबसूरत-सी बेख्याली

    मेरा कोरा दुपट्टा जिसे लहरिया रंगना था...थोडा नीला,थोडा आसमानी और बाकी वैसे का वैसा छोड़ना था...एकदम कोरा,सफ़ेद,बेदाग...उस मन के जैसा जिसे किसी ने छुआ न हो कभी! रंगरेज़ा! क्या किया तूने? कोरे हिस्सों पर आसमानी छींटें बिखेर दिए.और उसपर इतना पक्का रंग! कितना भी धो लूं,छूटेगा नहीं ये.पर धोऊँ कैसे इसे! हर बार हाथ में लेकर धोने का मन बनाती हूँ. तुम्हें कोसती हूँ. दुपट्टा खराब कर दिया मेरा. जी चाहता है तेरे सर दे मारूँ,"तू ही रख! मुझे नहीं चाहिए तेरी लापरवाही का नमूना".
    फिर वो कोरा हिस्सा-हाँ वही जिसपर आसमानी छींटें पड़े हैं,उसे अपनी बायीं हथेली पर फैलाती हूँ.उन आसमानी  छींटों पर दाहिने हाथ की तीन उंगलियाँ फेरती हूँ आहिस्ता.फिर मुस्कुरा उठती हूँ.रहने ही क्यूँ न दूं इसे यूँ ही. इतना बुरा भी तो नहीं लगता. या यूं कह लो की मन में ये ख्याल आ जाता है कि तुमने कैसी बेफिक्री में इसे रंगा होगा कि तुम्हारे सुघड़ हाथों से ऐसी चूक हो गयी होगी, कि तुमने चाहा थोड़े होगा, कि ये भूल तुम्हारे कारोबार का हिस्सा जो नहीं, कि इस चूक कि कोई कीमत जो नहीं चुकाई मैंने, कि मैं चुका भी नहीं सकती. तुम्हारी ये खूबसूरत-सी बेख्याली...ओह! अनजाने ही आयी है मेरे हिस्से में तुम्हारी ये बेपरवा गुस्ताखी.फिर तो ये अनमोल है. सहेज ही क्यूँ न लूं इसे.
   तहें लगाऊं इस दुपट्टे कि कुछ इस तरह कि ये छींटें ऊपर से किसी को नज़र न आयें, अन्दर की तहों में चले जायें. पर ज्यादा अन्दर नहीं. बस इतना भर कि जब ऊपर कि तहों को एक कोने से पकड़ के उठाऊं तो अन्दर वाली तह में वो छींटें दीख पाएं. हाँ वही! कोरे दुपट्टे पर आसमानी से! उनपर उँगलियाँ फेरती हुई मन ही मन  सोचा करूंगी तुम्हे. कि तुम तो अब भी डूबे होगे उन्हीं रंगों में .बैठे होगे बहुत-से रंग भरे हौजों के बीच में, किसी पागल लड़की का कोरा दुपट्टा लिए हाथों में...पेशानी पे बल और दो-एक उलझी लटें लिए...खोये से...दुनिया से बेख्याल इस ख्याल में डूबे कि किस दुपट्टे को कौन-सा रंग देना है- गुलाबी,आसमानी,धानी,चम्पई,सुरमई...  

7 comments:

देवांशु निगम said...

इसमे रंगरेज की कोई गलती नहीं है, जानता होगा की उसकी सुंदरता को मानी मिल ही जायेंगे | और रंग भी वैसा आता है जैसा रंगवाने वाला चाहता है | हाथ सुघड़ भले रहे हों, पर एक बार को देख के काँप गए होंगे.. कोरे मन को रंगना इतना आसान कब हुआ है?
और क्या पता उस टुकड़े को आसमानी रंग देना भी उसकी नेकनियती रही हो, पूरा आसमान, सातों सागर सब भर दिए| इनको तहें बनाके मत रखो, उड़ने दो खुले आसमान में लहरा के | मेरी तरफ से रंगरेज को बोलना "जियो रंगरेज..."

"मेरी राह भी तू, मेरा रहबर तू,
मेरा सरवर तू, मेरा अकबर तू,
मेरा मशरिक तू, मेरा मगरिब तू,
जाहिद भी मेरा, मुर्शिद भी तू,
तेरे बिना अब मै जाऊं कहाँ..
ए रंगरेज मेरे , ये बात बता रंगरेज मेरे, ये कौन से पानी में तूने कौन सा रंग घोला है...."

के सी said...

बहुत सुन्दर लिखा है. बधाई.

प्रवीण पाण्डेय said...

रंगभरी रंगरेज की दुनिया।

ashish said...

ये बेखयाली भी बड़ी रंगीन चीज़ होती है. कुछ ऐसा करवा देती है जो कभी किसी ने न चाह न सोचा और ना ही किया हो. एक अलग सी ऐसी दुनिया की तरह जिसमे जाने का कोई रास्ता नहीं.. बस बेखयाली ही वहाँ ले जा सकती है. इस बेखयाली को बड़े खुबसूरत अंदाज़ में बयान किय आपने. अनेक शुभकामनाएं.

Ravi Shankar said...

"शाद्वल..."

bas naam hi kaafi tha yahan tak khinche aane ke liye...halanki afsos hua ki bahut der se pahunch paya !

Ye bekhayaali aur iski khoobsurati apne saath liye jaa raha hoon... phir phir iske rang mein rang kar lautne ke liye !

Is behtareen lekhan ke liye abhinandan !

डॉ .अनुराग said...

वैसे ही जैसे मोहित जब रंगरेज गुनगुनाते है देर तक दिल की तहों में टहलते है .आपकी .बेख्याली की आमद कभी कभी सकून देती है इतना की .......कई रंग , चाहता है कभी मन से उतरे नहीं ...कभी नहीं .

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर लिखा है उत्तम भावाभिव्यक्ति ।

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