कभी सोचा है
कैसा होता है इंतज़ार करना
जब दिनों की गिनती
उँगलियों के पोरों की हद
पार कर जाए
कैसा होता होगा
हसरतों की बुनियाद पर
सपनों का घर बनाना
जबकि हर ईंट रखते हुए
कांपते हो हाथ
कि नींव अभी कच्ची है
पतझड़ के मौसम में
दरख्तों के बीच जाती सड़क पर
चलती हुई एक लड़की
सूखे पत्तों पर
डरती हुई पाँव रखती है
जाने किस पत्ती के पीछे
किसी मकडी ने कभी
अपने अरमान बुने होंगे
कुचल न जाएँ कहीं
हाय लगेगी
कि नींद से जाग कर भी
कोई आँखे न खोले
इस डर से कहीं
मरीचिका न टूटे
कि सचमुच
दूर-दूर तक
कोई नहीं है
कैसा होता है
यादों को सहेजना
जबकि मेरे पास
निशानी के तौर पर भी
तुम्हारा कुछ भी नहीं
लम्बी होती परछाइयों
और बढती ठण्ड वाली शामों में
शॉल को कसकर लपेटते हुए
ये सोचना कि
जाने कैसा होगा मौसम
तुम्हारे शहर में
हर रोज़ कैलेंडर में
तारीख़ काटते हुए ये सोचना
कि आख़िरी तारीख़ के लिए
अभी कई पन्ने पलटने हैं!
कैसा होता है इंतज़ार करना
जब दिनों की गिनती
उँगलियों के पोरों की हद
पार कर जाए
कैसा होता होगा
हसरतों की बुनियाद पर
सपनों का घर बनाना
जबकि हर ईंट रखते हुए
कांपते हो हाथ
कि नींव अभी कच्ची है
पतझड़ के मौसम में
दरख्तों के बीच जाती सड़क पर
चलती हुई एक लड़की
सूखे पत्तों पर
डरती हुई पाँव रखती है
जाने किस पत्ती के पीछे
किसी मकडी ने कभी
अपने अरमान बुने होंगे
कुचल न जाएँ कहीं
हाय लगेगी
कि नींद से जाग कर भी
कोई आँखे न खोले
इस डर से कहीं
मरीचिका न टूटे
कि सचमुच
दूर-दूर तक
कोई नहीं है
कैसा होता है
यादों को सहेजना
जबकि मेरे पास
निशानी के तौर पर भी
तुम्हारा कुछ भी नहीं
लम्बी होती परछाइयों
और बढती ठण्ड वाली शामों में
शॉल को कसकर लपेटते हुए
ये सोचना कि
जाने कैसा होगा मौसम
तुम्हारे शहर में
हर रोज़ कैलेंडर में
तारीख़ काटते हुए ये सोचना
कि आख़िरी तारीख़ के लिए
अभी कई पन्ने पलटने हैं!
12 comments:
...अभी मीलों दूर चलना है,
आगे बियाबान भी मिलेगा,
आगे समंदर भी होगा,
आगे तुम भी तो हो सकते हो !
जाने कैसा होगा मौसम
तुम्हारे शहर में
और जाने कैसा होगा तुम्हारा शहर...कि हमें तो ये तक पता नहीं कि उस शहर का नाम क्या है
Awesome..loved it :)
रख दो कोई अच्छा सा नाम
कल को हमने कब जाना है,
आज न्याय हम कब कर पाये?
आख़िरी तारीख तक पन्ने पलटते हुए इंतज़ार के जितने मौसम बीतें, सबके नाम हो एहसासों की ऐसी ही सुन्दरता से पिरोई हुई शब्दों की माला!
कैसा होता है
यादों को सहेजना
जबकि मेरे पास
निशानी के तौर पर भी
तुम्हारा कुछ भी नहीं... बहुत ही बढ़िया
हर रोज़ कैलेंडर में
तारीख़ काटते हुए ये सोचना
कि आख़िरी तारीख़ के लिए
अभी कई पन्ने पलटने हैं!.....
इस पर कुछ कहने के लिये अपने शब्दों में सामर्थ्य होना चाहिये और इन शब्दों को पढ कर चुप रहने के लिये अपने ऊपर कठोर नियंत्रण…… और मैं दोनों ही में कमजोर हूँ।
regards !
कविता है कि कागज़ पर दिल उतार कर रख लिया है...पढ़ कर कलेजे से लगा लेने के लिए तड़प जाएँ...मेरी जान...तेरे शब्दों की गीली आँखें देखती हूँ तो मेरे शहर में बारिशें हो जाती हैं...फिर भीगी मिट्टी की खुशबू से तेरी याद और भी गाढ़ी हो जाती है.
मेरी दोस्त, तुझे कुछ पंक्तियाँ सुनती हूँ...कि एक जादूगर ने लिखी थीं सूखी रेत पर...इससे पहले कि हवा मिटा दे निशान...सहेज कर रख लेना...
ये कैसा वादा था कि
अश्कों से जादू जगाने की मनाही थी
चुप सी पसरी थी परीशाँ मौसम में
जैसे बात कोई बाकी न थी
हवा अपनी सरसर से लिखती थी शिकवे रेत पर
शिकस्ता चाँद डूबा जाता था, ये किसकी याद आती थी.
चल उठ, उसी महबूब के घर चलें !
-KC
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मेरी चाँद सी प्यारी सहेली...इस खूबसूरत कविता के लिए तुझ तक मेरा ढेर सा प्यार पहुंचे
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